मन की परिकल्पना...!
कल्पनाओं का सजल - संजाल, मन - मस्तिष्क है...! यदि हो विकारों से ग्रसित, तब सुरसा नुमा फेहरिस्त है।। अच्छादित बेल अमरत्व सी, जीवन समूचा लीलकर, जड़ नहीं, शाखा नहीं और ना ही फूल पत्तियां, काल कलवित करती सदा, हट योग की वो वृत्तियां।। पर कहीं चंगा हुआ मन, बुनने लगेगा ख्वाब वो, अस्थि पंजर खून बिन, चढ़ जा…